क्या भगवान का शरीर सांसारिक शरीरों से भिन्न है?

By ISKCON Bhagavata Mahavidyalaya

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Hindi

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ISKCON Bhagavata Mahavidyalaya

ISKCON Bhagavat Mahavidyalaya aims to provide a facility for its members to study, practice, and disseminate the teachings of Srimad Bhagavatam, along with the writings of the Gaudiya Vaisnava acaryas and the branches of Vedic philosophy, culture, music and science in the context of Srila Prabhupada’s teachings. ISKCON Bhagavata Mahavidyalaya is located in Sri Govardhan dhama to systematically propagate the teachings of Śrīmad-Bhāgavatam and Caitanya-caritāmṛta to the society at large.

To accomplish the above mission, ISKCON Bhagavata Mahavidyalaya will facilitate philosophical training for adult residential and non-residential students through the traditional Vedic educational methods. ISKCON Bhagavat Mahavidyalaya has been inspired by the service and efforts of His Grace Gopiparanadhana Prabhu and His Holiness Gaur Krishna Gosvami Maharaja. Their dedication toward the study and the dissemination of the teachings of Srimad Bhagavatam is the torchlight guiding us forward to serve this mission.

Course Overview

पाठ्यक्रम शीर्षक:

श्री ईशोपनिषद 

(श्लोक 8): क्या भगवान का शरीर सांसारिक शरीरों से भिन्न है?

पाठ्यक्रम विवरण:

यह पाठ्यक्रम श्री ईशोपनिषद के महत्वपूर्ण श्लोकों के विस्तार से अध्ययन पर आधारित है। इसके माध्यम से श्रोताओं को वेदांतीय तत्त्वज्ञान, आत्मा का विशेष महत्व, और उसकी प्राप्ति के मार्ग का ज्ञान प्राप्त होगा।

पाठ्यक्रम सामग्री:

  • स पुनात्यग्निहोतमं (श्लोक 8):
  • जो सभी जीवों में आत्मा को देखता है, वह अपने कर्मों के फल से मुक्त हो जाता है। यह श्लोक कर्मफल के द्वारा आत्मा के पवित्र बनने की महत्वपूर्ण उपदेश देता है।
  • लक्ष्य श्रोता:
  • इस पाठ्यक्रम का मुख्य लक्ष्य श्रोताओं को वेदांतीय धार्मिकता के सिद्धांतों से परिचित कराना है। विशेष रूप से यह पाठ्यक्रम आत्मा के अस्तित्व और उसके महत्व को समझाने में मदद करता है।

पाठ्यक्रम की आवश्यकता:


  • आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश: जो लोग आत्मा और परमात्मा के बीच के भेद को समझने और आत्मज्ञान प्राप्त करने की खोज में हैं।
  • वेदांतीय सिद्धांतों का गहन अध्ययन: जो व्यक्ति वेदांतीय तत्त्वज्ञान और धर्म के गहरे अध्ययन के माध्यम से अपने जीवन को उन्नत करना चाहते हैं।
  • आध्यात्मिक विकास: जो लोग अपने जीवन में आध्यात्मिकता और धार्मिकता को समझकर आत्मविकास करना चाहते हैं।

कोर्स से प्रतिभागियों को क्या मिलेगा?


  • आत्मा और परमात्मा का ज्ञान: प्रतिभागी आत्मा और परमात्मा के बीच के भेद को समझ सकेंगे।
  • कर्म और आत्मा: कर्मफल और आत्मा के पवित्र बनने की प्रक्रिया का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
  • आध्यात्मिक समृद्धि: वेदांतीय सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाकर आध्यात्मिक समृद्धि और शांति प्राप्त करेंगे।
  • आत्मनिरीक्षण: आत्मनिरीक्षण की कला सीखेंगे, जिससे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सुधार होगा।
  • मानवता के प्रति सहानुभूति: सभी प्राणियों में आत्मा को देखने के सिद्धांत को अपनाकर मानवता के प्रति सहानुभूति और समर्पण का भाव विकसित करेंगे।

क्यों करना चाहिए यह कोर्स?


  • आध्यात्मिक संशोधन: अपने जीवन में आध्यात्मिक संशोधन और आत्मज्ञान की खोज में हैं।
  • आनंद की खोज: जीवन में आनंद और संतोष की खोज में हैं।
  • सार्थकता: अपने जीवन में सार्थकता और उद्देश्य प्राप्त करना चाहते हैं।
  • आत्मनिरीक्षण: आत्मनिरीक्षण के माध्यम से समस्याओं के समाधान के लिए तैयार हैं।
  • समर्पण और सहानुभूति: मानवता के प्रति समर्पण और सहानुभूति का विकास करना चाहते हैं।

हम इस पाठ्यक्रम के माध्यम से प्रतिभागियों की कौन-कौन सी समस्याओं का समाधान कर रहे हैं?


  • आत्मज्ञान की कमी: आत्मा और परमात्मा के बीच भेद को समझने में मदद।
  • कर्मफल की समझ की कमी: कर्म और उसके परिणामों के महत्व को समझना।
  • आध्यात्मिक शांति की कमी: मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने में सहायता।
  • सहानुभूति और मानवता की कमी: सभी प्राणियों के प्रति सहानुभूति और आदर का भाव विकसित करना।
  • आत्मनिरीक्षण की कला की कमी: आत्मनिरीक्षण की कला सीखने का अवसर।
  • आध्यात्मिक समृद्धि की कमी: आध्यात्मिक समृद्धि का अनुभव कराना।
  • जीवन में सार्थकता और उद्देश्य की कमी: आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन को सार्थक बनाना।

इस प्रकार, यह पाठ्यक्रम प्रतिभागियों को आत्मज्ञान, शांति, और आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है, जिससे उनका जीवन अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और सार्थक बन सके।

Course Content

Frequently Asked Questions

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